वेदों में कोरोना की भविष्यवाणी है या नहीं ?जानिए इस विषय में सच्चाई क्या है ?

Category: Forcasting (Health) Published: Monday, 13 April 2020 Written by Dr. Shesh Narayan Vajpayee

      वेदों में इस प्रकार की भविष्यवाणियाँ तो नहीं होती हैं किंतु वे वेदवैज्ञानिक विधियाँ अवश्य हैं जिनके द्वारा महामारियों के आने और जाने के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !मैं पिछले 25 वर्षों से ऐसे ही जीवन और प्रकृति  संबंधित विषयों पर पूर्वानुमान लगाने के  विषय पर अनुसंधान करता आ  रहा हूँ | उसी के आधार पर मैंने प्रधानमंत्री जी के मेल कर कई दिन पहले लिखकर भेज दिया था -
        "समयविज्ञान की दृष्टि से कोरोना समाप्ति का समय 13 अप्रैल से प्रारंभ होगा इसके बाद संपूर्ण विश्व इस महामारी से क्रमशः मुक्त होता चला जाएगा !"   मैं आज भी अपने उसी वेदवैज्ञानिक विश्वास के  आधार पर कह  सकता हूँ कि 14 अप्रैल से कोरोना की विदाई क्रमशः प्रारंभ हो जाएगी |
     जहाँ तक आधुनिक विज्ञान की बात है पूर्वानुमान लगाना उसके बश की बात ही नहीं है पूर्वानुमानविज्ञान पर उनके पास अभी तक कोई प्रक्रिया ही नहीं है यही कारण है कि पिछले दस वर्षों में जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनमें से अधिकाँश प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है |
    समुद्रों में उठे आँधी तूफानों बादलों को उपग्रहों रडारों के द्वारा देखकर उनकी गति और दिशा के अनुशार इस  बात का अंदाजा लगा लेना कि ये किस दिन कहाँ पहुँचेंगे और भविष्यवाणियों के नाम पर वही बता दिया जाना | इसे विज्ञान कैसे मान लिया जाएगा और विज्ञान इसमें है भी क्या ? ये तो आँधी तूफानों एवं बादलों की जासूसी है | उपग्रहों रडारों से भूकंप और महामारियाँ दिखाई नहीं पड़ती हैं इसलिए इन क्षेत्रों में ऐसी जासूसी संभव नहीं है इसीलिए ऐसे क्षेत्रों में लीपापोती की गुंजाइश ही नहीं बचती है इसलिए हाथ खड़े कर दिए गए हैं कि इन बिषयों का पूर्वानुमान हम नहीं लगा सकते हैं | वर्षा आँधी तूफानों के विषय में बड़ा झोल होता है सारा झूठ भी उसी में छिप जाता है | कोई तीर तुक्का सही हो गया तो भविष्यवाणी और गलत हो गया तो जलवायुपरिवर्तन | गलत अपने द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ संपूर्ण रूप से गलत हो जाने पर भी अपने को सही सिद्ध करने के लिए अलनीनों ला नीनों जैसी न जाने कितनी काल्पनिक कहानियाँ गढ़कर समाज में परोस दी जाती हैं |
     दवा केवल रोगों की खोजी जा सकती  है महारोगों(महामारियों) की नहीं !जिस रोग की दवा खोज ही ली जाए तो वह  महामारी किस बात की ! इसीलिए आजतक किसी महामारी की कोई औषधि खोजी नहीं जा सकी है |कोई भी महामारी अपने समय से आती है जब तक उसे रहना होता है रहती है जितना जनसंहार करना होता है कर लेती है और जब जाना होता है तब अपने समय से ही जाती है किसी के प्रयासों से नहीं !इसलिए कोरोना से लड़ना या उसे हराना या भगाना या उस पर विजय प्राप्त करने की बातें करना आदि जैसी बातें मिथ्या अहंकार है इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है |
     जिस प्रकार से भूखी बिल्ली किसी चूहों के समूह पर टूट पड़ती है वो चूहों के विरोध की परवाह किए बिना जितने चूहे खाना चाहती है उतने खाती है जितनों को घायल करना होता है उतने घायल करती है इसके बाद जब वह जाने लगती है तब कुछ चूहे उसके पीछे घंटी लेकर दौड़ते हुए यह दिखाना चाहते हैं कि हम बिल्ली के गले में बाँधने के लिए दौड़ रहे थे इसी डर से वह भाग गई है | इसीप्रकार से माहामारी समाप्त हो जाने के बाद उसकी दवा या वेक्सीन आदि खोज लेने के दावे हर बार किए जाते हैं जिनकी परवाह किए बिना हर महामारी अपने समय से आती और जाती रहती है | हमेंशा से ऐसा ही होता रहा है |
      वस्तुतः महामारियाँ प्राकृतिक  होती हैं ये समय से आती हैं और अपने समय से ही समाप्त होती हैं इनके समाप्त होने के समय पर जो जिस प्रकार के उपाय कर रहा होता है उसे लगता है कि महामारियों को उसने अपने उन्हीं प्रयासों से जीता है  ऐसे अंधविश्वास का शिकार जादू टोना करने वाले लोग तो होते ही हैं बड़े बड़े डॉक्टर और चिकित्सा वैज्ञानिक आदि  भी होते हैं |
      जहाँ तक महामारियों का पूर्वानुमान लगाने की बात है | इस विषय में वेदविज्ञान के अतिरिक्त और कहीं कोई प्रक्रिया ही नहीं है और न ही महामारियों से मुक्ति दिलाने के लिए कोई औषधि भी नहीं होती है हाँ पथ्य परहेज से कुछ बचाव अवश्य हो जाता है |महामारियों के आने और जाने का समय क्या होता है इसका पूर्वानुमान 'समयविज्ञान'  के द्वारा ही लगाया जा सकता है |आधुनिक विज्ञान में महामारियों का पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई प्रक्रिया नहीं है|

     ऐसी परिस्थिति में सरकारों की ओर से 'मौसमविज्ञान' से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए जो जो कुछ किया जाता है वो अवैज्ञानक एवं अंधविश्वास होता  है ! ऐसे मौसमविज्ञान के संचालन से लेकर अनुसंधानों तक पानी की तरह पैसा बहाया जाता रहा है उससे संबंधित लोगों की सैलरी आदि सुख सुविधाओं पर जो धन खर्च किया जा रहा है बीते 144 वर्षों में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की मौसमपूर्वानुमान के क्षेत्र में उपलब्धि आखिर क्या है !
          इसके लिए धन जिस जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिया जाता है उसके बदले में सरकार आखिर उस जनता को दे क्या पाती है | पाई पाई और पल पल का हिसाब देने का संकल्प लेकर जो सरकार सत्ता में आई थी !उसके कार्यकाल में भी यदि इस सच्चाई को स्वीकार नहीं किया जा रहा है तो ये चिंता की बात है |
      कुल मिलाकर  मौसमविज्ञानविभाग यदि मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में ही सफल नहीं हो पाया है तो महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की आशा उनसे नहीं की जानी चाहिए !आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इस प्रकार का पूर्वानुमान लगाने की कोई प्रक्रिया है भी नहीं |भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति में महामारियों का पूर्वानुमान लगाने की जो प्रक्रिया है भी उसे जानने वाले बहुत कम लोग हैं |जो हैं भी उन्हें केवल इस लिए विज्ञान सम्मत न होने की बात कहकर झुठला दिया जाता है कि यदि इस वैदिक प्रक्रिया को विज्ञान के रूप में स्वीकार कर लिया गया तो अपनी इस झूठ की दुकानदारी का क्या होगा | सरकारों में सम्मिलित लोग उन्हीं के चश्मे से देखकर उन्हीं से बिचार विमर्श करके इस बात का निर्णय लेते हैं कि वेद विज्ञान है भी या नहीं ?वो नहीं ही कहेंगे ऐसा करना उनकी अपनी मजबूरी है |
     इन सबके बाद भी मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि वेदवैज्ञानिक सच्चाई का सूर्योदय हो चुका है उसे झूठ के बादलों से अब अधिक समय तक ढककर नहीं रखा जा सकेगा !अँधेरी रात के बाद सबेरा होता है ये सच्चाई सबको पता है |
     सबेरा होते ही मुर्गे बोलने लग जाते हैं जिससे लोगों को पता लग जाता है कि सबेरा हो चुका है ऐसी परिस्थिति में यदि मुर्गों को इस बात का घमंड हो जाए कि यदि हम नहीं बोलेंगे तो सबेरा नहीं होगा | ऐसी परिस्थिति में मुर्गों का यह भ्रम तभी टूटता है जब उनके न बोलने पर भी भगवान् सूर्य स्वयं प्रकट हो जाते हैं सबेरा होने का पता बिना घोषणा के भी सभी को लग जाता है |
    इसी प्रकार से वेदविज्ञान के विज्ञान होने की बात यदि घमंडी लोग नहीं भी स्वीकार करेंगे तो भी इस सूर्योदय को रोक पाना  अब  उनके बश में नहीं है | उसी प्रभात की आशा में इस सच्चाई को सामने लाने के लिए मैं वो हर संभव प्रयास करता रहूँगा जहाँ तक हमारी शक्ति सामर्थ्य और परिस्थितियाँ साथ देंगी | तब तक मैं भी यूँ ही काल के कपाल पर लिखता मिटाता रहूँगा | ऐसा मेरा भी निश्चय है !

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