स्वास्थ्य :शारीरिक और मानसिक पूर्वानुमानविज्ञान की उपेक्षा से होते हैं नुकसान ?
पूर्वानुमान केवल मौसम का ही क्यों जीवन का क्यों नहीं ?
अच्छी बुरी घटनाएँ यदि प्रकृति में घटित होती हैं तो जीवन में भी तो घटित होती रहती हैं!प्राकृतिक घटनाएँ यदि प्राकृतिक वातावरण को बना बिगाड़ सकती है तो जीवन में घटित होने वाली घटनाएँ जीवन को भी बना बिगाड़ देती हैं!प्रकृति में यदि वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान भूकंप आदि घटनाएँ घटित होती हैं तो मनुष्य शरीरों में भी तो ऐसे ही अनेकों प्रकार के रोग दोष ,चोट-चभेट आदि घटनाएँ घटित होती रहती हैं!जीवन के लिए शरीर और मन से संबंधित समस्याएँ भी बहुत महत्त्व रखती हैं !जीवन के लिए मौसम का पूर्वानुमान जानना यदि आवश्यक होता है तो शरीर के लिए शारीरिक और मानसिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना भी बहुत आवश्यक होता है !मौसम विज्ञान की पक्रिया से यदि मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है तो शरीरविज्ञान की पद्धति से शरीर संबंधी पूर्वानुमान लगाने की उपेक्षा क्यों की जा रही है उसका भी तो अनुसंधान किया जाना चाहिए !माना की आधुनिक मौसम वैज्ञानिकों में पूर्वानुमान जानने की क्षमता का अभाव है इसीलिए तो वो मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के नाम पर झूठ बोलकर सरकारों को बरगलाया करते हैं ! इसलिए प्राचीन मौसम विज्ञान विभाग तो प्रकृति और जीवन से संबंधित सभी प्रकार के पूर्वानुमान लगाने में सक्षम है !
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समय और संबंधों का पूर्वानुमान लगाने के लिए किया जा सकता है हमारे यहाँ संपर्क !
तनावविज्ञान
इससे संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए 'समयविज्ञान' एवं 'लक्षणविज्ञान' का अध्ययन करना होता है !कुछ वर्ष महीना दिन आदि ऐसे आते हैं जिसमें बिना किसी विशेष कारण के भी लोग तनाव चिंता उन्माद निराशा भय आदि भावना का अनुभव करने लगते हैं इसे प्रकट करने के लिए कोई न कोई कारण खोज लेते हैं और उसे मुद्दा बनाकर उबल पड़ते हैं !कई बार ये उबाल हिंसक हो जाता है और कई बार अहिंसक ही बना रहता है !ऐसा कब होगा इसके लिए समय विज्ञान का अध्ययन आवश्यक है तथा ऐसा कहाँ होगा इसके लिए वहाँ की प्रकृति एवं प्राकृतिक लक्षणों आकृतियों आकारों का अध्ययन आवश्यक होता है !
विशेष - किसी एक समय में एक स्थान पर ऐसी परिस्थिति घटित होने पर भी सभी को एक जैसा तनाव उन्माद निराशा भय आदि नहीं होता है!किसी को अधिक होता है किसी को कम होता है और किसी को बिल्कुल नहीं होता है !इसका कारण उन सभी का अपना अपना समय होता है !इसके अलावा उस तनाव अवसाद आदि को कुछ सह पाते हैं कुछ नहीं सह पाते हैं और अचानक कोई अप्रिय घटना घटित हो जाती है !इसका कारण भी उन सबका अपना अपना समय होता है !
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मौसम की तरह ही जीवन से संबंधित घटनाओं समस्याओं रोगों मनोरोगों आदि का भी लगाया जा सकता है पूर्वानुमान !
समयविज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है प्रकृति और जीवन में घटित
होनेवाली सभीप्रकार की घटनाओं का पूर्वानुमान !
यह सबसे बड़ा विज्ञान है विश्व का सारा विज्ञान समयविज्ञान के आधीन है !विज्ञान के आधीन होकर वैज्ञानिक लोग अनुसंधान करने के लिए केवल प्रयास ही तो कर सकते हैं किंतु रिसर्च का वह प्रयास सफल ही होगा ऐसा निश्चय कोई कैसे कर सकता है इस विषय का निर्णय समय के आधीन होता है जिसका पूर्वानुमान केवल समयविज्ञान के द्वारा ही लगाया जा सकता है !
संसार में जो कुछ हो चुका है ,जो कुछ हो रहा है या जो कुछ होगा ! ये सभी कुछ समय के आधीन है !प्रकृति और मनुष्य आदि सभी जीव जंतुओं का जीवन साथ साथ चल रहा है जब प्रकृति पीड़ित और परेशान होती है तब जीवन भी परेशान होता है !प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही प्राणियों के में रोग रूप में घटित होते हैं!
प्राकृतिक आपदाओं और जीवन से संबंधित समस्याओं का पूर्वानुमान लगाने में असफल है आधुनिकविज्ञान ! जानिए क्यों ?
भविष्य में किस विषय से संबंधित क्या होगा इसे पहले से जान लेना ही तो पूर्वानुमान है !किसी भी विषय में पूर्वानुमान हो जाने से सावधानी बरत कर और सतर्क होकर अपने लिए हानिकर संभावनाओं को कम करने का प्रयास किया जा सकता है उनसे बचने का प्रयास किया जा सकता है !उन्हें सहने के लिए अपने को मानसिक शारीरिक आदि रूप से तैयार किया जा सकता है !
इसी प्रकार से अपने लिए लाभकर संभावनाओं को अत्यंत प्रयासपूर्वक, अधिक से अधिक परिश्रम ,सतर्कता और संसाधनों को लगाकर उस समय का अधिक से अधिक लाभ लेकर अपनी उन्नति की जा सकती है !
पूर्वानुमान की आवश्यकता !
पानी कब बरसेगा ?आँधी कब आएगी ?बाढ़ कब आएगी ?वायु प्रदूषण कब बढ़ेगा ?सर्दी गर्मी वर्षा आदि कब कब कितनी कितनी होगी आदि के विषय में पहले से अनुमान लगा लेना प्रकृति से संबंधित पूर्वानुमान होते हैं !
मौसमविज्ञानविभाग तो मूर्ख बनाया करता है समाज और सरकार को !
मौसम भविष्यवाणी बताने के नाम पर केवल झूठ ही तो बोला करता है मौसम
विभाग !
आधुनिक विज्ञान के पास किसी भी विषय से संबंधित पूर्वानुमान का पता लगाने का कोई आधार ही नहीं हैं तो वे बेचारे बतावें कैसे !मौसम के विषय में जो वो तीर तुक्के लगाने की कोशिश भी करते हैं वो लोगों को मूर्ख बनाने से ज्यादा कुछ भी यहीं है !जहाँ बादल उठे हुए देखते हैं और उन्हें
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