राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान ! (RPS)
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (समयविज्ञान )
संस्थान के बारे में : राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान दिल्ली स्थित एक अनुसंधान संस्थान है |इसकी स्थापना वैसे तो सन 1992 में हो गई थी,किंतु पंजीकृत सन 2012 में हुआ था |हमारे संस्थान का उद्देश्य समस्यामुक्त सुखशांति युक्त स्वस्थ समाज का निर्माण करना है|इसी लक्ष्य को लेकर अनुसंधानकार्य किए जा रहे हैं | इसमें आयुर्वेद विज्ञान,स्वरविज्ञान,ज्योतिषविज्ञान,जीवजंतुविज्ञान एवं बनस्पतिविज्ञान के साथ साथ पृथ्वी से लेकर आकाश तक में हमेंशा होते रहने वाले प्रकृति परिवर्तनों का भी अध्ययन एवं अनुसंधान करना होता है |प्रकृति में वर्तमान समय में घटित हो रही कोई एक प्राकृतिक घटना भविष्य में
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (समयविज्ञान )
प्रकृति हो या जीवन सब कुछ समय का ही खेल है | समय हमेंशा एक जैसा नहीं रहता है |इसमें बदलाव तो होते रहते हैं |इसीलिए प्रकृति और जीवन में भी बदलाव होते रहते हैं |यही कारण है कि प्रकृति और जीवन को समझने के लिए समय के संचार को समझना होगा |
ध्यान से देखा जाए तो प्रकृति में प्रतिदिन अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ नया होता है | ऐसे ही प्रत्येक स्त्री पुरुष के जीवन में प्रतिदिन कुछ नया होता है |प्रकृति और जीवन में हर पल कुछ नए परिवर्तन हुआ करते हैं | ये परिवर्तन कभी शुभ तो कभी अशुभ होते हैं | शुभ परिवर्तनों से मनुष्य सुखी होता है प्रकृति अनुकूल व्यवहार करती है और अशुभ परिवर्तनों से प्रकृति प्रतिकूल व्यवहार करती है | उससे प्राकृतिक आपदाएँ एवं महामारी जैसी घटनाएँ घटित होते देखी
मौसम पूर्वानुमान :अगस्त - 2022 (वैदिक)-
मौसम पूर्वानुमान :अगस्त - 2022 (वैदिक)-
अगस्त महीने का संक्षिप्त मौसम पूर्वानुमान !
अगस्त महीने में वर्षा की संभावना काफी अधिक है ! सामान्य वर्षा तो अगस्त के अधिकाँश दिनों में होगी !मध्यम और अधिक वर्षा अगस्त के लगभग 15 दिनों तक होती रहेगी |इससे विश्व का अधिकाँश भाग बाढ़ ग्रस्त हो सकता है | सरकारों के द्वारा गठित अच्छे से अच्छे आपदा प्रबंधन
मौसम पूर्वानुमान आज से दस हजार वर्ष पहले तक का जानने की विधि !
प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिकों का यह ढुलमुल रवैया अत्यंत चिंताजनक है | महामारी हो या मौसम किसी क्षेत्र में वैज्ञानिकों की कोई सार्थक भूमिका ही नहीं दिखाई पड़ रही है | प्राकृतिक आपदा आने से पहले वे उसके विषय में कुछ भी बता पाने में कभी सफल नहीं हुए हैं प्राकृतिक आपदाएँ जब बीत जाती हैं तब वही वैज्ञानिक पहले तो लीपापोती करनी शुरू करते हैं और बाद में वही लोग महामारी या मौसम से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं के विषय में भविष्य को लेकर तरह तरह की डरावनी अफवाहें फैलाने लगते हैं |जिन मौसम संबंधी अनुसंधानों के भारत सरकार पानी की तरह पैसा बहाती है वे अपने मौसम संबंधी पूर्वानुमान बताकर जनता का विश्वास जीतने में तो कभी सफल हो ही नहीं सके | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी को 28 जून एवं 16 जुलाई 2015 को बनारस में आयोजित दो रैलियाँ मौसम के कारण ही कैंसिल करनी पड़ीं थीं जिनकी तैयारियों पर करोड़ों रूपए खर्च हुए थे | ऐसे अनुसंधानों में यदि इतनी भी क्षमता नहीं है कि वे प्रधान मंत्री जी को भी अपने पूर्वानुमानों से मदद पहुँचा सकें जनता उनसे क्या आशा करे ?
इसप्रकार से जो लोग एक दो सप्ताह पहले के मौसम संबंधी पूर्वानुमान सही सही नहीं बता पाते हैं वही जलवायु
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