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राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान

Category: Uncategorised Published: Friday, 11 October 2024 Written by Dr. Shesh Narayan Vajpayee

                              राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (समयविज्ञान )

 
       प्रकृति हो या जीवन सब कुछ समय का ही खेल है | समय हमेंशा एक जैसा नहीं रहता है |इसमें  बदलाव तो होते रहते हैं  |इसीलिए प्रकृति और जीवन में भी बदलाव होते रहते हैं |यही कारण है कि प्रकृति और जीवन को समझने के लिए समय के संचार को समझना होगा |
     ध्यान से देखा जाए तो  प्रकृति में प्रतिदिन अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ नया होता है | ऐसे ही प्रत्येक स्त्री पुरुष के जीवन में प्रतिदिन कुछ नया होता है |प्रकृति और जीवन  में हर पल कुछ नए परिवर्तन हुआ करते हैं | ये परिवर्तन कभी शुभ तो कभी अशुभ होते हैं | शुभ परिवर्तनों से मनुष्य सुखी होता है प्रकृति अनुकूल व्यवहार करती है और अशुभ परिवर्तनों से प्रकृति प्रतिकूल व्यवहार करती है | उससे प्राकृतिक आपदाएँ एवं महामारी जैसी घटनाएँ घटित होते देखी

जाती हैं | ऐसे ही मनुष्यों का समय जब अच्छा होता है तब वो सुखी स्वस्थ  संपन्न एवं आनंदित होता है | ऐसे समय उससे सभी लोग मिलना चाहते हैं | बुरे समय में  नए नए रोग पैदा होते हैं | तनाव बढ़ता है | व्यापार में  नुक्सान होता है |  मित्र और रिश्तेदार धोखा देने लगते हैं | संबंध टूटते हैं, परिवार बिखरते हैं ,वैवाहिक संबंध टूटने लगते हैं | ऐसी स्थिति में घटनाएँ न देखकर केवल समय देखिए क्योंकि प्रकृति और जीवन में जो घटनाएँ  घटित होती हैं | वे अच्छे और बुरे समय के अनुसार ही घटित होती हैं | प्राकृतिक रूप से जब बुरा समय चलने लगता है, तब प्राकृतिक आपदाएँ महामारियाँ घटित होती हैं | उस समय जिसका अपना बुरा समय चल रहा होता है नुक्सान उसी का होता है | परेशानियाँ  उन्हें ही झेलनी पड़ती हैं | जिनका अपना समय भी बुरा चल रहा होता है | जिनका अपना अच्छा समय चल रहा होता है | वे औरों की तरह ही प्राकृतिक आपदाओं  या महामारियों से पीड़ित तो होते हैं किंतु उन्हें कोई विशेषकष्ट नहीं होता है | महामारियों में भी बहुत लोग  सब कुछ खाते रहे सबको छूते रहे लेकिन उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई |
     ऐसे ही स्वास्थ्य के अलावा भी विवाह वैवाहिक जीवन व्यापार भवन वाहन संबंध सुख दुःख तनाव पद प्रतिष्ठा आदि  जितनी भी जीवन से संबंधित समस्याएँ हैं | वे सब बुरे अपने बुरे समय का परिणाम होती हैं | बुरा समय भी भिन्न भिन्न प्रकार का होता है | जिससे भिन्न भिन्न प्रकार की समस्याएँ पैदा होती हैं | ये समस्याएँ पैदा तो अपने या समस्याओं से संबंधित व्यक्ति के बुरे समय के कारण होती हैं ,किंतु इसके लिए उस व्यक्ति को जिम्मेदार मानकर हम उससे संबंध समाप्त कर लेते हैं | ऐसे बहुत लोग तनाव का शिकार बने हुए हैं | विवाह टूट रहे हैं परिवार बिखर रहे हैं समाज खंडित हो रहा है |
     भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिकआपदाएँ, महामारियाँ या जीवन से संबंधित घटनाएँ ये सब अचानक घटित होने लगती हैं |ऐसी आपदाएँ घटित होते ही तुरंत नुक्सान हो जाता है या फिर उसी समय नुक्सान होना प्रारंभ जाता है| जिससे जनधन की हानि जो  होनी होती है वो हो ही जाती है |इसके तुरंत बाद आपदाप्रबंधन विभाग सारी जिम्मेदारी सँभाल ही लेता है |
     ऐसी परिस्थिति में आपदाएँ घटित होने एवं नुक्सान होने के बीच में समय इतना नहीं मिल पाता है कि संभावित प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकें या बचाव  के लिए आवश्यक सतर्कता बरती जा सके !
     इसलिए आवश्यकता ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की है | जिनके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले सरकार एवं  समाज को यह जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना कब घटित होने  वाली है |जिससे घटना घटित होने से पहले सरकार आपदा प्रबंधन संबंधी व्यवस्थाओं को तैयार कर ले एवं ऐसे आवश्यक संसाधन जुटाना प्रारंभ  कर दे जिससे  उस प्रकार की आपदा से नुक्सान कम से कम हो ऐसा  सुनिश्चित किया जा सके | इसके साथ ही  साथ ऐसे पूर्वानुमान पाकर समाज भी अपने स्तर से सावधानी बरतनी प्रारंभ कर दे |यदि ऐसा संभव हो तब तो प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता है अन्यथा ऐसे निरर्थक अनुसंधानों की जनहित में उपयोगिता ही क्या बचती है |  

                                             
                  वर्षा संबंधी प्राकृतिक अनुसंधानों की आवश्यकता  
    भारत कृषि प्रधान देश है! कृषि कार्यों एवं फसलयोजनाओं के लिए वर्षा की बहुत बड़ी भूमिका होती है | यद्यपि वर्षा की आवश्यकता तो सभी फसलों को होती है किंतु धान जैसी कुछ फसलों  के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है और मक्का जैसी कुछ फसलों के लिए कम वर्षा की आवश्यकता होती है|ऐसी परिस्थिति में धान जैसी अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलों को किसान लोग नीची जमीनों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान ऊँची जमीनों पर बोते हैं |
   इसी प्रकार से किसी वर्ष की वर्षाऋतु में वर्षा बहुत अधिक होती है जबकि किसी वर्ष की वर्षा ऋतु में वर्षा बहुत कम होती है | इसलिए जिस वर्ष में वर्षा अधिक होने की संभावना होती है उस वर्ष किसान लोग धान जैसी अधिक अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलें अधिक खेतों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान कम खेतों में बोते हैं |
     धान जैसी फसलों में पहले बीज बोकर थोड़ी जगह में बेड़ तैयार की जाती है निर्धारित समय बाद उन  पौधों की रोपाई पूरे खेत में करनी होती है उस समय अधिक पानी की आवश्यकता होती है इसलिए किसान लोग इस प्रकार की योजना पहले से बनाकर चलते हैं ताकि धान की रोपाई के समय तक मानसून आ चुका हो  जिससे पानी की कमी न पड़े | इसके लिए किसानों को सही सटीक मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | इसके लिए मानसून आने के विषय में सही तारीखों का पता लगना जरूरी  माना जाता है |
     मार्च अप्रैल में फसलें तैयार होने पर किसान लोग वर्ष भर के लिए आवश्यक आनाज एवं भूसा आदि संग्रहीत करके बाकी बचा हुआ आनाज भूसा आदि बेच लिया करते हैं |जिससे उनकी आर्थिक आवश्यकताओं  पूर्ति हो जाती  है |इसके  लिए उन्हें मार्च अप्रैल में ही वर्षा ऋतु में  होने वाली संभावित बारिश का पूर्वानुमान पता करने की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि खरीफ की फसल पर इसका प्रभाव पड़ता है | मार्च अप्रैल में किसानों को आनाज एवं भूसा आदि का संग्रह करके बाकी बचे हुए अनाज भूसा आदि की बिक्री के लिए किसानों को खरीफ की फसल की उपज को ध्यान में रखकर चलना होता है |इसके लिए वर्षा ऋतु संबंधी  सटीक मौसम  पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |                 
                     
                  राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की उपलब्धियाँ !
     भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी प्राकृतिक घटनाएँ एवं कोरोना जैसी महामारियाँ अचानक घटित होने लगती हैं | जिसमें बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं | जिनसे समाज की सुरक्षा की जानी आवश्यक है किंतु अभी तक ऐसे कोई उपाय किए नहीं जा सके हैं |जिससे ऐसी आपदाओं से समाज को सुरक्षित बचाकर रखा जा सके |
        वर्षा की आवश्यकता कृषि कार्यों के लिए किसानों को अधिक होती है | इसका पूर्वानुमान आगे से आगे पता लगता रहे तो कृषि कार्यों में और अधिक सफलता मिल सकती है जिससे उपज को बढ़ाया जा सकता है, किंतु वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए अभीतक ऐसी कोई वैज्ञानिक विधा विकसित नहीं की जा सकी है | जिसके द्वारा वर्षा या मानसून के विषय में सही पूर्वानुमान उपलब्ध करवाए जा सकें |ऐसी स्थिति में हमारे द्वारा पिछले 35 वर्षों से किए जा रहे अनुसंधान काफी  घटित होते  रहे हैं |  
   इसी प्रकार से कोरोना महामारी की प्रत्येक लहर के विषय में हमारे द्वारा सही सटीक पूर्वानुमान लगाकर कर भारतसरकार को भेजे जाते रहे हैं,जो बिल्कुल सही निकलते रहे हैं | इतना ही नहीं प्रत्युत यह भी पता लगा लिया जाता रहा है कि महामारी में किसे संक्रमित होना और किसे संक्रमित नहीं होना है |  
     इसके अतिरिक्त विवाह, वैवाहिक जीवन, संतान,संबंध,व्यापार, भवन, वाहन, सुख दुःख, तनाव पद प्रतिष्ठा आदि  जितनी भी जीवन से संबंधित समस्याएँ हैं |उनके समाधान निकालकर समाज को विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित चिंताओं से मुक्त करने का प्रयत्न किया जा रहा है |                  

                     राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान  की आवश्यकता !          

     वर्तमानसमय में समाज दिनोंदिन आंदोलित एवं हिंसक होता जा रहा है| चारों ओर उन्माद फैला हुआ है आतंकी घटनाएँ अक्सर घटित हुआ करती हैं | जिनमें बहुत लोग मारे जाते हैं|विश्व में कुछ देश युद्ध लड़ रहे हैं कुछ देश युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं | ऐसी घटनाओं से लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त होते जा  रहे हैं | विवाह टूट रहे हैं | परिवार बिखर रहे हैं समाज खंडित होते जा रहे हैं |आपसी विश्वास समाप्त होता जा रहा है | प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं चली जाती हैं | महामारी आई चली गई ऐसी घटनाओं में लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त होते रहते हैं | धन धान्य का नुक्सान होता है | लोग चलते फिरते हँसते खेलते मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे हैं | उस उन्नत विज्ञान की मदद से मनुष्यों की सुरक्षा कैसे हो ये समझ में नहीं आ रहा है | पहले तो मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाने के मजबूत प्रयास हों !सुख  सुविधा के साधन तो बाद में जुटा लिए जाएँगे | प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए मजबूत प्रयत्न करने होंगे |
    'राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान' ऐसे सार्थक अनुसंधानों का पक्षधर है |जो अनुसंधान जिन समस्याओं के समाधान के लिए किए जाएँ उन समस्याओं के आने पर उन अनुसंधानों से समाज को कुछ तो मदद मिलनी ही चाहिए ,अन्यथा अनुसंधानों का प्रयोजन ही क्या रह जाएगा !
     भूकंप संबंधित अनुसंधानों को ही लें तो भूकंपविज्ञान है, भूकंपवैज्ञानिक हैं,भूकंपसंबंधी अनुसंधान भी होते रहते हैं | अनुसंधानों से संबंधित संसाधनों पर भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है|इसी के साथ  वैज्ञानिकों की पद प्रतिष्ठा एवं उनकी सैलरी आदि सुख सुविधाओं पर काफी धन खर्च होता है | यह संपूर्ण धन जो सरकारें ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया करती हैं |यह धन उस जनता से टैक्स रूप में सरकारों को प्राप्त होता है |  इसके बदले यही जनता अपने भूकंप वैज्ञानिकों से ऐसी आशा लगाए रहती है कि भूकंपों के आने के विषय में ये हमें पहले से सही सटीक पूर्वानुमान बताएँगे तथा सुरक्षा के ऐसे उपाय बताएँगे जिनसे भूकंपों के आनेपर जनधन का नुक्सान कम से कम होगा  | जिससे समाज की सुरक्षा सुनिश्चित होगी  |
      दुर्भाग्य से भूकंपों के आने पर ऐसे अनुसंधानों से समाज को कोई मदद मिल नहीं पाती है | जितना नुक्सान होना होता है उतना होता ही है| इसलिए भूकंप संबंधी  अनुसंधानों की सार्थकता भले न सिद्ध हो पाई हो | उन अनुसंधानों सेसे भूकंप पीड़ित समाज को कोई मदद भले न मिल सकी हो ,किंतु वास्तविक भूकंप वैज्ञानिकों के अभाव में कुछ ऐसे लोगों भूकंप वैज्ञानिक मानकर  वही गौरव पूर्ण जीवन के साथ साथ उच्चतम पद प्रतिष्ठा प्रदान की जा चुकी है | वही सुख सुविधाएँ दी जा चुकी हैं | जो वास्तविक भूकंप वैज्ञानिकों के लिए निर्द्धारित की गई थीं |भूकंपों के विषय में किए जा रहे अनुसंधानों में उनका  योगदान क्या है ये अभी तक समाज को पता नहीं है |                         

      "उन्नत विज्ञान पर गर्व करो किंतु प्राचीन विज्ञान से खोजो  अपनी समस्याओं के समाधान !'


    कहने को तो वर्तमान समय में विज्ञान उन्नतशिखर के पर है,जिसके द्वारा सुख सुविधाओं के साधन तो विकसित किए जा सके हैं किंतु प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से हो रही जनधन हानि को रोका जाना संभव नहीं हो पा रहा है |वर्तमान समय का उन्नत विज्ञान उस उँचाई पर नहीं पहुँच पा रहा है, जहाँ ऐसी बड़ी घटनाओं का  निर्माण होता है |समस्याओं के समाधान के लिए भी अनुसंधानों एवं अनुसंधानकर्ताओं को उसी उँचाई पर पहुँचना होगा !जिस प्रकार से प्राचीन काल में ऋषिमुनि  इन्हीं प्राकृतिक परिवर्तनों का अध्ययन अनुसंधान आदि करने के लिए जंगलों में रहा करते थे |महानगरों की चकाचौंध में सुखसुविधापूर्ण जीवन जीते हुए प्राकृतिक आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के विषय में  अनुसंधानपूर्वक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं है |                                    

                    राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की  संपर्क योजना - 

 
      प्रत्येक व्यक्ति को पता होना ही चाहिए कि उसका अपना समय कब अच्छा और कब बुरा चलेगा |    इसके लिए 'राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान' ने घर घर और जन जन तक पहुँचने की योजना बनाई है|जिसके तहत प्रत्येक व्यक्ति को उसके भविष्य में आने वाले अच्छे और बुरे समय के विषय में जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी !   हमारा जनजन तक पहुँचने का लक्ष्य और जन जन से जुड़ने का संकल्प है !जिससे प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक परिवार सुख सुविधापूर्ण शिक्षित स्वस्थ एवं तनाव रहित जीवन जी सके | प्राकृतिक घटनाओं , आपदाओं एवं महामारियों से मनुष्य जीवन को सुरक्षित रखते हुए उसे उसके जीवन से जुड़ी ज्योतिष, कुंडली , वास्तु आदि के विषय में सही जानकारी लेने के लिए हमारे यहाँ संपर्क किया जा सकता है |सभी प्रकार के संकटों का समाधान खोजने के लिए हमारे यहाँ से ज्योतिष संबंधी मदद ली जा सकती है | ज्योतिष वास्तु आदि से संबंधितसभी प्रश्नों का ऑनलाइन उत्तर प्राप्त किया जा सकता है |

                                               

               राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (समयविज्ञान )

   
          संस्थापक : डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
      एम.ए. - ज्योतिष ( ज्योतिषाचार्य)सं.सं.विश्वविद्यालय वाराणसी
    पीएच.डी. - ज्योतिष : काशी हिंदू विश्व विद्यालय          
    एम.ए.संस्कृतव्याकरण (व्याकरणाचार्य )सं.सं.विश्वविद्यालय वाराणसी
    एम.ए.हिंदी -कानपुर विश्व विद्यालय
     पी.जी.डी.पत्रकारिता :उदय प्रताप कालेज वाराणसी     
       Web:https://samayvigyan.com/
      Web :www.drsnvajpayee.com/

   'ज्योतिष सेवा संवाद' के लिए संपर्क सूत्र
    Email : This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.       
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       Whatsapp web :9811226973

 

                                                      अनुसंधानों की आवश्यकता और आपूर्ति  में अंतर

 वर्षा के विषय में सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा पा रहा है | भूकंप बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी किसी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाना भी नहीं संभव हो पा रहा है ! यद्यपि वर्षा और तूफानों को कुछ पहले देखने के लिए उपग्रहों रडारों से मदद मिल जाती है किंतु अभी तक ऐसा कोई विज्ञान सामने नहीं लाया जा सका है | जिसके द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं  के स्वभाव को समझा जा सके और उसके आधार पर ऐसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके |
   महामारी संबंधी अनुसंधानों की भी यही स्थिति है | पड़ोसी देशों के साथ भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों युद्धों में मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु हुई थी | उससे बहुत बड़ी संख्या में लोग केवल कोरोना महामारी में मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |जिसको समझने के लिए अभी तक कोई विज्ञान ही नहीं है |
   प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए कुछ नहीं किया जा सका है|ऐसी प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए अभीतक कोई विज्ञान नहीं है | ऐसी स्थिति में प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि से मनुष्यजीवन को सुरक्षित बचाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक तैयारी नहीं है |
      इसी प्रकार से लोगों के बढ़ते तनाव को कम करना,टूटते विवाहों को बचाना,बिखरते परिवारों को सुरक्षित बचाना,संबंधों में बढ़ती दूरियों को कम करने जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए अभी तक कोई विज्ञान नहीं है |   
    मनुष्यों के लिए सुख सुविधा के साधन भले  खोज लिए  गए हों किंतु ऐसी आपदाओं से मनुष्यों के जीवन को सुरक्षित बचाना संभव नहीं हो पा रहा है | मनुष्य ही यदि सुरक्षित नहीं बचेंगे तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा !जो मनुष्यों को सुखी करने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा बनाई गई हैं |मनुष्यों के जीवन को सुरक्षित किए बिना उन अनुसंधानों के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो पा रही है |
      ज्योतिष  एक बहुत बडा विज्ञान है।हर क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।आकाश  के वर्षा आँधी तूफान से लेकर पाताल की परिस्थितियों का वर्णन,सामाजिक विप्लव से लेकर सामाजिक महामारी आदि का भी इससे पता लगाया जा सकता है।
    व्यक्ति गत जीवन से जुड़ी छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी तक सभी बातों से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी,बीमारी तथा भविष्य में होने वाली बीमारियों का भी ज्योतिष  से पता लगाया जा सकता है।
    ऐसी परिस्थिति में महामारी जैसी आपदाओं के समय लोगों को संक्रमित होने से कैसे बचाया जाए | महामारी मुक्त समाज की स्थापना करने के लिए क्या किया जाए !समाज में  बढ़ते अपराधों,उन्मादों,ब्यभिचारों,भ्रष्टाचारों को घटाने के लिए  किस प्रकार से प्रयत्न किए जाएँ | ऐसी सभी चिंताओं की चुनौती स्वीकार करने के लिए 'राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान' कृतसंकल्प है | भारत के प्राचीनविज्ञान के आधार पर अनुसंधानपूर्वक ऐसी सभी संभावित समस्याओं के पूर्वानुमान लगाकर उनके पैदा होने से पहले ही उनके समाधान आगे से आगे खोजे जा रहे हैं |  
                                                      भारत का प्राचीनविज्ञान और कृषि अनुसंधान !
     प्राचीनकाल में मौसम की जानकारी के लिए  वायुमंडल के अध्ययन का सूक्ष्म अनुभव था | उस अनुभव को सूत्रों में बॉंधकर उन्हें सिद्धांत रूप दे देना ये बहुत बड़ा काम किया जाता था ।
      उदाहरण के रूप में शुक्रवार को यदि आकाश  में बादल दिखाई पड़ जाएँ  और वो शनिवार को भी बने रहें तो समझ लेना चाहिए कि पानी जरूर बरसेगा।
      ऐसे ही  यदि पूरब दिशा  में बिजली चमकती हो और उत्तरदिशा  में हवा चलने लगे तो समझ लेना  चाहिए कि वर्षा  अवश्य  होगी।
       इसी प्रकार वायुमंडल के अध्ययन के और बहुत सारे सूक्ष्म अनुभव भी  हैं | जिनसे यह पता चलता है कि इस सप्ताह ,महीने या वर्ष में कहॉं कितना पानी बरसेगा।आँधी,तूफान,ओले,पाला,कोहरा,ठंड,गर्मी आदि कब कहॉं और कितनी पड़ेगी?
      किस वर्ष  कौन फसल कितनी होगी ? कौन फसल प्रकृति के प्रकोप के कारण कितनी मारी जाएगी इसका भी आकलन इसी वायुमंडल से कर पाना संभव है।       
                                              भारत का प्राचीनविज्ञान और स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधान !
      वायुमंडल में किस तरह का वातावरण बनने पर  किस प्रकार की बीमारी या महामारी आदि फैलने की संभावना बन सकती है इसके भी काफी मजबूत सूत्र प्राचीन विज्ञान में मिलते हैं।
      आयुर्वेद में इस प्रकार के प्राचीन  वैज्ञानिक विवेचन का स्पष्ट विवरण है। वहॉं एक प्रसंग में स्पष्ट  समझाया गया है कोई महामारी या सामूहिक बीमारी फैलने से पहले वायु मंडल में एक अजीब सा परिवर्तन आ जाता है जैसे जिसप्रकार की बीमारी होनी होती है उसे रोकने में सक्षम जो बनौषधियॉं अर्थात जंगली जड़ी बूटियॉं होती थीं सबसे पहले वो या तो सूखने लगती थीं या उनमें कोई कीड़ा लग जाता था या किसी अन्य प्रकार से वे नष्ट होने लगती थीं। इस प्रकार का प्राकृतिक उत्पात जहॉं जहॉं दिखाई पड़ता था वहॉं वहॉं उस प्रकार की बीमारी या महामारी होने या बढ़ने की संभावना विशेष होती है।इसमें बनौषधियों में बीमारी रोकने का जो विशेष गुण होता है। वह बीमारी पैदा होने से पहले ही नष्ट  हो जाता है। इस दुष्प्रभाव से ही महामारी फैलने पर वह दवा लाभ नहीं करने लगती है।
       अतएव बनस्पतियों में परिवर्तन आता देखकर उस युग के कुशल स्वास्थ्य वैज्ञानिक बड़ी मात्रा में बनौषधियों का संग्रह कर लेते थे।जहॉं की बनौषधियॉं रोगी न हुई हों वहॉं की तथा बीमारी से पूर्व संग्रह की गई औषधियॉं उस बीमारी से निपटने में  पूर्णतः सक्षम होती थीं। उन्हीं के बल पर उस युग के कुशल स्वास्थ्य वैज्ञानिक उन महामारियों पर विजय पा लिया करते थे।
    चिकित्सा शास्त्र आत्मा ,मन और शरीर इन तीन रूपों में स्वास्थ्य को देखता है।इस शरीर से जन्म जन्मांतर के कर्म संबंधों को स्वीकार करता है अच्छी बुरी परिस्थिति भी जीवन में हमें इसी कारण भोगनी पड़ती है।बड़ी एवं लंबे समय तक चलने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियॉं भी इसी प्रकार से घटित होती हैं।ऐसी परिस्थितियों में पहली बात बीमारियों का पता लगा पाना कठिन होता है और यदि पता लग भी जाए तो उन पर दवा असर नहीं करती या बहुत देर से करती है।यहॉ कुशल ज्योतिषी परिश्रम पूर्वक कारण और निवारण दोनों ढूँढ़ सकता है जिसका पालन करने के बाद दवा का प्रभाव होना प्रारंभ होगा।

 

 

 

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