कोरोना कब तक रहेगा ?जानिए पूर्वानुमान !

Category: Forcasting (Health) Published: Saturday, 21 March 2020 Written by Dr. Shesh Narayan Vajpayee

     सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि महामारी के शुरू होने या उसके समाप्त होने के विषय में पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाए जा सकते हैं ?ये आवश्यक नहीं माने जा रहे हैं या इनका पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं है | आखिर समस्या क्या है जनता जानना चाहती है |
    'समयविज्ञान' के आधार पर मेरे द्वारा इस प्रकार के जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं उन्हें वर्तमान वैज्ञानिक प्रक्रिया में विज्ञान नहीं माना जाता और जिसे विज्ञान माना जाता है पूर्वानुमान लगाना उसके बश की बात नहीं है यदि होती तो कोरोना जैसी महामारी के विषय में  पूर्वानुमान जनता को बताए गए होते और ये महामारी समाप्त कब होगी इसके विषय में भी कुछ भविष्यवाणी की गई होती किंतु ऐसा नहीं किया जा सका ऐसी परिस्थिति में समय विज्ञान के आधार पर मैंने कोरोना के समाप्त होने के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे यहाँ उद्धृत किए जा रहे हैं |     "कोरोना जैसी महामारी के इतने बड़े संकट से निपटने में कुछ समय तो लगेगा किंतु अधिक घबड़ाने की आवश्यकता इसलिए नहीं है क्योंकि इस दृष्टि से जो समय अधिक बिषैला था वो 11 फरवरी तक ही निकल चुका था | इसलिए महामारी का केंद्र रहे वुहान में यहीं से इस रोग पर अंकुश लगना प्रारंभ हो गया था | उसके बाद इस  महामारी के वुहान से दक्षिणी और पश्चिमी देशों प्रदेशों में फैलने का समय चल रहा है | जो  24 मार्च 2020 तक चलेगा|उसके बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा |उसके बाद के समय में

पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा |"

   विस्तार से -

    ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है | किसी भी महामारी की शुरुआत समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने पर ही महामारी की समाप्ति होती है | समय से पहले इस पर नियंत्रण करने के लिए अपनाए जाने वाले प्रयास उतने अधिक प्रभावी नहीं होते हैं |
      किसी महामारी पर नियंत्रण न हो पाने का कारण यह है कि  कोई भी महामारी तीन चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती  है  ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ पाता है |
     विशेष बात यह है जो औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि ऐसे रोगों में लाभ पहुँचाने के लिए जानी जाती रही हैं बुरे समय का प्रभाव उन पर भी पड़ने से वे उतने समय के लिए निर्वीर्य अर्थात गुण रहित हो जाती हैं जिससे उनमें रोगनिवारण की क्षमता नष्ट हो जाती है |
      महामारी समय के बिगड़ने से प्रारम्भ होती है और समय के सुधरने से ही समाप्त होती है प्रयत्नों का बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाता है |पहले समय की गति सँभलती है उस प्रभाव से ऋतुविकार नष्ट होते हैं उससे पर्यावरण सँभलता है |उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर पड़ता है |कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषण मुक्त होकर जीवन के लिए हितकारी होने लग जाता है |
        इसमें कोई संशय नहीं है कि वर्तमान विश्व का जो चिकित्सा विज्ञान अपने अनुसंधानों की अच्छाई के कारण  नित्य नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है वही विज्ञान इतनी बड़ी कोरोना जैसी महामारी का पूर्वानुमान लगाने में सफल नहीं हो सका !यह स्वीकार करने में भी कोई संकोच नहीं होना चाहिए |
     इस महामारी के होने का कारण क्या है इसके लक्षण क्या हैं और इससे मुक्ति पाने के लिए उचित औषधि क्या है इसके साथ ही यह कोरोना अभी कब तक और परेशान करेगा !इस विषय में कुछ काल्पनिक बातों के अतिरिक्त वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर कुछ भी कह पाना संभव नहीं हो पाया है |
    यह स्थिति केवल कोरोना जैसी इसी महामारी की नहीं है अपितु जब भी कोई महामारी आती है तब इसी प्रकार की ऊहापोह की स्थिति का सामना उसे करना पड़ता है इस विषय में हजार वर्ष पहले जो स्थिति थी वही स्थिति आज भी बनी हुई है |
     किसी महामारी के फैलने के समय जब वर्तमान समय के अत्यंत विकसित चिकित्सा विज्ञान की सबसे अधिक आवश्यकता समाज को होती है तब जनता को केवल भाग्य के सहारे ही नियति को स्वीकार करना पड़ता है | इस क्षेत्र में विज्ञान की विशेषता का कोई विशेष लाभ नहीं लिया जा सका है | महामारी पनपने पर जनता को केवल भाग्य के भरोसे ही रहना पड़ता है | ऐसा एक दो बार नहीं अपितु अनेकों बार अनुभव किया जा चुका है जैसा कि आज हो रहा है |
     ऐसी परिस्थिति में किसी भी महामारी का संकट समाज को तब तक सहना पड़ता है जब तक कि वह महामारी रहती है जब वह महामारी समाप्त होना शुरू होती है तब धीरे धीरे स्वयं ही समाप्त होती है इसमें मनुष्यकृत प्रयासों की बहुत अधिक भूमिका नहीं होती है फिर भी महामारी समाप्त होने के समय में जो  प्रकार के उपाय कर रहा होता है उसे लगता है कि वह उसी उपाय से स्वस्थ हुआ है इसी प्रकार से सरकारों को लगता है कि उन्होंने जो जितने प्रयास किए हैं उसी से इस महामारी से मुक्ति मिली है जबकि ऐसा दवा करने का मतलब सच्चाई से मुख मोड़ना होता है |
      हमें हमेंशा याद रखना चाहिए कि जो रोग हमारे खान पान रहन सहन आचार व्यवहार आदि के बिगड़ जाने के कारण होते हैं ऐसे रोग खान पान रहन सहन आचार व्यवहार आदिके सँभालने से ही पीछा छोड़ते हैं | विशेष बात यह है कि महामारी जैसे जो रोग बुरे समय के कारण प्रारंभ होते हैं ऐसे रोगों की समाप्ति भी अच्छे समय के आने पर ही होती है इनमें प्रयास प्रायः निरर्थक होते देखे जाते हैं | जहाँ तक महामारी पनपने की बात है तो समय के प्रभाव से ही पैदा होती है और समय के प्रभाव से ही समाप्त होती है इसमें खान पान आदि को दोष नहीं दिया जा सकता है | क्योंकि इतनी  बड़ी संख्या में लोगों का खानपान एक साथ नहीं बिगड़ सकता है |
      ऐसी महामारियों से सबसे अधिक पीड़ित वे लोग होते हैं जिनका इसी समय में ही अपना व्यक्तिगत समय भी ख़राब आ गया होता है अन्यथा जिन क्षेत्रों में महामारी के कारण बहुत सारे लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है उन्हीं क्षेत्रों में बहुत सारे लोग ऐसे भी होते हैं को जीवन लीला उन्हीं क्षेत्रों में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी होता है कि वह बिल्कुल स्वस्थ बना रहता है उसे किसी प्रकार का कोई रोग पीड़ा परेशानी आदि नहीं होने पाती है और वह बिलकुल स्वस्थ बना रहता है |क्योंकि उसका अपना समय अच्छा चल रहा होता है | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इस बात की जानकारी आगे से आगे रखनी चाहिए कि उसका समय कब कैसा चल रहा है | जिसका समय अच्छा न चल रहा हो उसे महामारियों के समय में विशेष अधिक सतर्कता बरतनी होती है अन्यथा उनमें से बहुत लोगों के जीवन की रक्षा होना कठिन होते देखा जाता है |
     इसीलिए आयुर्वेद की चरक और सुश्रुत आदि संहिताओं में महामारी फैलने तथा उनके समाप्त होने से संबंधित पूर्वानुमान लगाने की जो विधि बताई गई है उसे आधुनिकविज्ञान के क्षेत्र में विज्ञान नहीं मानने की सरकारी परंपरा है | इस कारण ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकारी तौर पर अधिकृत लोग ये काम स्वयं इसलिए नहीं कर पाते हैं क्योंकि आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में जब रोगों का पूर्वानुमान लगाने की ही कोई विज्ञान विधा नहीं है तो पूर्वानुमान लगाया भी कैसे जाए |
       ऐसी परिस्थिति में सरकारी तौर पर जिसे विज्ञान मानने का रिवाज है वो पूर्वानुमान लगाने में सक्षम नहीं है और जो विज्ञान पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हैआधुनिक विज्ञान के विद्वान् लोग उसे विज्ञान नहीं मानते भले ही उससे अर्जित किए गए पूर्वानुमान कितने भी सही एवं सटीक क्यों न हों | जिस विषय को वे विज्ञान नहीं मानते हैं उन्हीं के चश्मे से झांकने वाली सरकारों का आत्मबल इतना मजबूत नहीं होता कि वे ऐसी परिस्थिति में दोनों विज्ञान विधाओं का परीक्षण करके जो सच लगे जनहित में उसे स्वीकार करें | सरकारों की इस दुर्बलता का दंड जनता को भोगना पड़ता है |
      मौसम समेत किसी भी क्षेत्र से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में अक्षम आधुनिक विज्ञान की इस अयोग्यता का दंड समाज को प्रत्येक क्षेत्र में भोगना पड़ा रहा है | दूर की बातें न की जाएँ तो भी पिछले दस वर्षों में जितनी भी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनमें से किसी का भी पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका है जो बताए भी जाते हैं वे अक्सर गलत ही होते देखे जाते हैं |
      भूकंप के विषय में तो अयोग्यता स्वीकार भी की जाती है किंतु वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों आदि का पूर्वानुमान लगाने के लिए रडारों उपग्रहों से प्राप्त चित्रों के द्वारा ऐसी घटनाओं की जासूसी कर ली जाती है कि कौन बादल या तूफ़ान कितनी गति से कब किधर जा रहे हैं उसी हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है यदि हवा का रुख नहीं बदला तो कभी कभी तुक्का सही भी हो जाता है अन्यथा अक्सर गलत ही होता है |मौसम पूर्वानुमान से संबंधित ऐसे तीर तुक्के जब जब गलत निकल जाते हैं तो वो अपने द्वारा की गई तथाकथित भविष्यवाणी के गलत हो जाने की बात को न स्वीकार करके अपितु ग्लोबल वार्मिंग जलवायुपरिवर्तन अलनीनों ला नीना जैसी काल्पनिक बातें बोलकर इतनी बड़ी गलती को हवा में उड़ा दिया जाता है |
      इसलिए इतना तो तय है कि पूर्वानुमान लगाने की पद्धति अभीतक खोजी नहीं जा सकी है इसीलिए मौसम संबंधी पूर्वानुमान प्रायः गलत होते देखे जाते हैं |जिनके विषय में अनुसंधान की कोई तकनीक यदि खोजी जा सकी होती तो मौसम के साथ साथ प्रकृति एवं जीवन से जुड़े सभी विषयों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |उसी तकनीक से कोरोना जैसी महामारी होने से पूर्व एवं इसके होने तथा समाप्त होने संबंधी पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |
   प्रकृति और जीवन से संबंधित अच्छी और बुरी सभी प्रकार की घटनाऍं समय के साथ साथ घटित होती रहती हैं अच्छा समय आता है तब अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और बुरा समय आता है तब भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ जैसी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित हुआ करती हैं जब समय बहुत अधिक बुरा होता है तब बड़ी दुर्घटनाओं के साथ साथ समय समय पर होने वाले रोग महामारियों का रूप ले लिया करते हैं और वे तब तक रहते हैं जब तक बुरे समय का प्रभाव रहता है और समय बदलते ही ही वे स्वयं ही समाप्त हो जाया करते हैं | जिस पर मैं विगत लगभग तीस वर्षों से अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ | उसी 'समयविज्ञान' के आधार पर मैंने कोरोना जैसी महामारी के विषय में भी प्रयास किया है |Corona will be how long?

           

   

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